फासीवाद के 14 लक्षण
डा. लॉरेंस ब्रिट
डा. लॉरेंस ब्रिट – एक राजनीतिक विज्ञानी जिन्होंने फासीवादी शासनों जैसे हिटलर (जर्मनी), मुसोलिनी (इटली ) फ्रेंको (स्पेन), सुहार्तो (इंडोनेशिया), और पिनोचेट (चिली) का अध्ययन किया और निम्नलिखित 14 लक्षणों की निशानदेही की है;
1. शक्तिशाली और सतत राष्ट्रवाद — फासिस्ट शासन देश भक्ति के आदर्श वाक्यों, गीतों, नारों , प्रतीकों और अन्य सामग्री का निरंतर उपयोग करते हैं. हर जगह झंडे दिखाई देते हैं जैसे वस्त्रों पर झंडों के प्रतीक और सार्वजानिक स्थानों पर झंडों की भरमार.
2. मानव अधिकारों के मान्यता प्रति तिरस्कार — क्योंकि दुश्मनों से डर है इसलिए फासिस्ट शासनों द्वारा लोगो को लुभाया जाता है कि यह सब सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वक्त की ज़रुरत है. शासकों के दृष्टिकोण से लोग घटनाक्रम को देखना शुरू कर देते हैं और यहाँ तक कि वे अत्याचार, हत्याओं, और आनन-फानन में सुनाई गयी कैदियों को लम्बी सजाओं का अनुमोदन करना भी शुरू कर देते हैं.
3. दुश्मन या गद्दार की पहचान एक एकीकृत कार्य बन जाता है — लोग कथित आम खतरे और दुश्मन – उदारवादी; कम्युनिस्टों, समाजवादियों, आतंकवादियों, आदि के खात्मे की ज़रुरत प्रति उन्मांद की हद तक एकीकृत किए जाते हैं.
4. मिलिट्री का वर्चस्व — बेशक व्यापक घरेलू समस्याएं होती हैं पर सरकार सेना का विषम फंडिंग पोषण करती है. घरेलू एजेंडे की उपेक्षा की जाती है ताकि मिलट्री और सैनिकों का हौंसला बुलंद और ग्लैमरपूर्ण बना रहे.
5. उग्र लिंग-विभेदीकरण — फासिस्ट राष्ट्रों की सरकारें लगभग पुरुष प्रभुत्व वाली होती हैं. फासीवादी शासनों के अधीन, पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को और अधिक कठोर बना दिया जाता है. गर्भपात का सख्त विरोध होता है और कानून और राष्ट्रीय नीति होमोफोबिया और गे विरोधी होती है
6. नियंत्रित मास मीडिया – कभी कभी तो मीडिया सीधे सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है, लेकिन अन्य मामलों में, परोक्ष सरकार विनियमन, या प्रवक्ताओं और अधिकारियों द्वारा पैदा की गयी सहानुभूति द्वारा मीडिया को नियंत्रित किया जाता है. सामान्य युद्धकालीन सेंसरशिप विशेष रूप से होती है.
7. राष्ट्रीय सुरक्षा का जुनून – एक प्रेरक उपकरण के रूप में सरकार द्वारा इस डर का जनता पर प्रयोग किया जाता है.
8.धर्म और सरकार का अपवित्र गठबंधन — फासिस्ट देशों में सरकारें एक उपकरण के रूप में सबसे आम धर्म को आम राय में हेरफेर करने के लिए प्रयोग करती हैं. सरकारी नेताओं द्वारा धार्मिक शब्दाडंबर और शब्दावली का प्रयोग सरेआम होता है बेशक धर्म के प्रमुख सिद्धांत सरकार और सरकारी कार्रवाईयों के विरुद्ध होते हैं.
9. कारपोरेट पावर संरक्षित होती है – फासीवादी राष्ट्र में औद्योगिक और व्यवसायिक शिष्टजन सरकारी नेताओं को शक्ति से नवाजते हैं जिससे अभिजात वर्ग और सरकार में एक पारस्परिक रूप से लाभप्रद रिश्ते की स्थापना होती है.
10. श्रम शक्ति को दबाया जाता है – श्रम-संगठनों का पूर्ण रूप से उन्मूलन कर दिया जाता है या कठोरता से दबा दिया जाता है क्योंकि फासिस्ट सरकार के लिए एक संगठित श्रम-शक्ति ही वास्तविक खतरा होती है.
11. बुद्धिजीवियों और कला प्रति तिरस्कार – फासीवादी राष्ट्र उच्च शिक्षा और अकादमिया के प्रति दुश्मनी को बढ़ावा देते हैं. अकादमिया और प्रोफेसरों को सेंसर करना और यहाँ तक कि गिरफ्तार करना असामान्य नहीं होता. कला में स्वतन्त्र अभिव्यक्ति पर खुले आक्रमण किए जाते हैं और सरकार कला की फंडिंग करने से प्राय: इंकार कर देती है.
12. अपराध और सजा प्रति जुनून – फासिस्ट सरकारों के अधीन कानून लागू करने के लिए पुलिस को लगभग असीमित अधिकार दिए जाते हैं. पुलिस ज्यादितियों के प्रति लोग प्राय: निरपेक्ष होते हैं यहाँ तक कि वे सिविल आज़ादी तक को देशभक्ति के नाम पर कुर्बान कर देते हैं. फासिस्ट राष्ट्रों में अक्सर असीमित शक्ति वाले विशेष पुलिस बल होते हैं.
13. उग्र भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार — फासिस्ट राष्ट्रों का राज्य संचालन मित्रों के समूह द्वारा किया जाता है जो अक्सर एक दूसरे को सरकारी ओहदों पर नियुक्त करते हैं और एक दूसरे को जवाबदेही से बचाने के लिए सरकारी शक्ति और प्राधिकार का प्रयोग किया जाता है. सरकारी नेताओं द्वारा राष्ट्रीय संसाधनों और खजाने को लूटना असामान्य बात नहीं होती.
14.चुनाव महज धोखाधड़ी होते हैं — कभी-कभी होने वाले चुनाव महज दिखावा होते हैं. विरोधियों के विरुद्ध लाँछनात्मक अभियान चलाए जाते है और कई बार हत्या तक कर दी जाती है , विधानपालिका के अधिकारक्षेत्र का प्रयोग वोटिंग संख्या या राजनीतिक जिला सीमाओं को नियंत्रण करने के लिए और मीडिया का दुरूपयोग करने के लिए किया जाता है.
June 19, 2009 at 2:12 PM
बिल्कुल ठीक कहा, फासीवाद के ये लक्षण हर उस देश में दिखाई देते हैं, जहां फासीवादी ताकतें लगातार काम कर रही है।
इन लक्षणों की तुलना भारत से करते हुए प्रस्तुत किया जाता तो ज्यादा अच्छा रहता। क्या इस पोस्ट को मैं अपने ब्लॉग बर्बरता के विरुद्ध पर दे सकता हूं।
यदि आपके पास इस तरह की और सामग्री हो तो जरूर सूचित करें, और यदि आप इस ब्लॉग के लिए कुछ सामग्री का अनुवाद करने में मदद कर सकें तो और भी बेहतर होगा।
June 19, 2009 at 4:16 PM
प्रिय साथी, हेडर में शायद सर्वहारा पुनर्जागरण और सर्वहारा प्रबोधन होना चाहिए, इनके आगे नया लगाने की जरूरत नहीं है शायद।
June 19, 2009 at 4:45 PM
संदीप जी,
इस ब्लॉग पर उपलब्ध सामग्री कॉपी राईट से मुक्त है. आप निश्चित तौर पर इसका प्रयोग कर सकते. आप इसे और अधिक बोधगम्य बना पायें तो बेहतर रहेगा. अनुवाद सम्बन्धी जितनी भी मदद हो सकेगी, सहर्ष की जायेगी.
June 19, 2009 at 9:22 PM
बेहतर प्रस्तुति…
संदीप जी की बात…
“इन लक्षणों की तुलना भारत से करते हुए प्रस्तुत किया जाता तो ज्यादा अच्छा रहता।”
अगली पोस्ट में कर ही दिया जाना चाहिए…
August 11, 2009 at 8:51 AM
साथी ,आप लोगों का प्रयास बेहतरीन है। पहले शुभ कामनाएं लें। हिन्दी में विचारों का सागर तैयार करने में आपने अच्छी शुरूआत की है। फासीवाद के बारे में उपरोक्त टिप्पणी में एक समस्या है वह यह कि फासीवाद के मॉजूदा स्वरूप को यह सम्बोधित नही करती। फासीवाद का मौजूदा स्वरूप परवर्ती पूंजीवाद के दौर में कई नए पड़ावों से गुजरा है और इन नए रूपों को लक्षणों के साथ रेखांकित करने की जरूरत है।
February 9, 2011 at 4:55 PM
रोचक जानकारी
November 16, 2011 at 8:36 PM
[…] इस ब्लॉग पर फासीवाद के लक्षणों के बारे में एक पोस्ट दी गयी थी। उसी पोस्ट को साभार यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। पहले सोचा था कि इन लक्षणों के भारतीय उदाहरण भी साथ में दिए जाएं तो अच्छा होगा, लेकिन फिर लगा कि ब्लॉग जगत पर सभी लोग जागरूक हैं, उन्हें ठोस उदाहरण देने की जरूरत नहीं वे खुद ही इसके निष्कर्ष निकाल सकते हैं। ये लक्षण डा. लॉरेंस ब्रिट ने बताए हैं जो एक राजनीतिक विज्ञानी हैं जिन्होंने फासीवादी शासनों – जैसे हिटलर (जर्मनी), मुसोलिनी (इटली ) फ्रेंको (स्पेन), सुहार्तो (इंडोनेशिया), और पिनोचेट (चिली) – का अध्ययन किया और निम्नलिखित लक्षणों की निशानदेही की है: 1. शक्तिशाली और सतत राष्ट्रवाद — फासिस्ट शासन देश भक्ति के आदर्श वाक्यों, गीतों, नारों, प्रतीकों और अन्य सामग्री का निरंतर उपयोग करते हैं. हर जगह झंडे दिखाई देते हैं जैसे वस्त्रों पर झंडों के प्रतीक और सार्वजनिक स्थानों पर झंडों की भरमार. जबकि वास्तव में ये किसी भी देश के मुट्ठी भर लोगों की सत्ता के कट्टर समर्थक होते हैं। इनकी ”देशभक्ति” का अर्थ मुट्ठीभर लोगों की समृद्धि, और बहुसंख्यक आबादी की बदहाली होती है। […]
May 5, 2016 at 9:47 AM
[…] https://samajvad.wordpress.com/2009/06/19/%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%… […]